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इंग्लैंड जाने वाला विकाश: भारत की पहली U-15 Disability क्रिकेट टीम का चमकता सितारा

इंग्लैंड जाने वाला विकाश: भारत की पहली U-15 Disability क्रिकेट टीम का चमकता सितारा

इंग्लैंड जाने वाला विकाश: भारत की पहली U-15 Disability क्रिकेट टीम का चमकता सितारा

भारत में क्रिकेट को धर्म की तरह माना जाता है। लेकिन जब कोई ऐसा युवा, जो मानसिक रूप से अक्षम है, अपनी मेहनत और लगन से देश के लिए खेलने जा रहा हो, तो वह सिर्फ एक खिलाड़ी नहीं, बल्कि प्रेरणा बन जाता है।
तमिलनाडु के मदुरै के रहने वाले 21 वर्षीय विकाश गणेशकुमार ऐसी ही प्रेरणा बनकर उभरे हैं।

विकाश का चयन – एक नया इतिहास

भारत की पहली U-15 Disability क्रिकेट टीम को इंग्लैंड में होने वाली International Mixed Disability T20 Series (15 जून – 4 जुलाई 2025) के लिए चुना गया है। इस टीम में विकाश तमिलनाडु से चुने गए एकमात्र खिलाड़ी हैं और भारत के चार मानसिक रूप से अक्षम (intellectually disabled) खिलाड़ियों में से एक हैं।

विकाश का चयन इस बात का प्रमाण है कि प्रतिभा को कभी किसी सीमा में नहीं बांधा जा सकता।


कौन हैं विकाश गणेशकुमार?

विकाश एक साधारण परिवार से आते हैं। उनके पिता एक छोटी सी दुकान चलाते हैं और मां गृहिणी हैं। विकाश को बचपन से ही मानसिक रूप से थोड़ी कठिनाई रही है, लेकिन उन्होंने कभी भी इसे अपनी कमजोरी नहीं बनने दिया।
उन्हें बचपन से क्रिकेट का जुनून था, और वह हमेशा अपने दोस्तों के साथ गली में खेलते थे। धीरे-धीरे उनके खेल में सुधार आया और स्थानीय स्तर पर कोचिंग शुरू की।

उनके कोच के. गोविंदराजन बताते हैं,

“विकाश की सबसे खास बात है उसका फोकस। वो हर दिन नेट्स पर समय से आता है और जो सिखाया जाता है, उसे ध्यान से समझता है।”


डिसेबिलिटी टीम क्या होती है?

डिसेबिलिटी क्रिकेट उन खिलाड़ियों के लिए होता है जो किसी ना किसी रूप में शारीरिक, मानसिक या दृष्टि से अक्षम होते हैं। लेकिन ये खिलाड़ी मैदान पर उतनी ही लगन और जोश के साथ खेलते हैं, जितना कोई और।

इस बार भारत की टीम में विकलांग, दृष्टिहीन, व्हीलचेयर यूज़र्स, और मानसिक रूप से अक्षम खिलाड़ी शामिल हैं। यह एक “Mixed Disability” टीम है, जो सभी वर्गों को एक साथ खेलने का मौका देती है।

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इंग्लैंड का यह टूर्नामेंट क्यों खास है?

यह टूर्नामेंट न केवल भारत की पहली भागीदारी है बल्कि यह देश के लिए एक बड़ा अवसर है अंतरराष्ट्रीय मंच पर समानता और समावेशन (inclusion) दिखाने का।
इस टूर्नामेंट में भारत के अलावा इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया, पाकिस्तान, बांग्लादेश जैसी टीमें हिस्सा ले रही हैं।

भारत में ऐसे खिलाड़ियों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेलने का मौका कम मिलता है। यह सीरीज़ एक नई शुरुआत है, जो भविष्य में और बड़े टूर्नामेंट्स के दरवाज़े खोलेगी।


विकाश की भूमिका क्या होगी?

टीम में विकाश को ऑलराउंडर के तौर पर चुना गया है।
उनकी लेफ्ट-हैंड बैटिंग और मीडियम पेस बॉलिंग ने ट्रायल्स के दौरान सभी को प्रभावित किया था।
कोच ने उन्हें “गेम-चेंजर” कहा है—ऐसा खिलाड़ी जो किसी भी समय मैच का रुख बदल सकता है।


परिवार का सपना हुआ सच

विकाश के माता-पिता भावुक हैं।
उनकी मां कहती हैं:

“हमें कभी उम्मीद नहीं थी कि हमारा बेटा विदेश जाकर इंडिया के लिए खेलेगा। हम तो चाहते थे वो ठीक से पढ़-लिख जाए, लेकिन अब तो वह लाखों लोगों की प्रेरणा बन गया है।”


समाज के लिए एक संदेश

विकाश की यह सफलता सिर्फ एक खिलाड़ी की कहानी नहीं, बल्कि समाज को एक आइना दिखाने वाली बात है।
कई बार हम शारीरिक या मानसिक अक्षमता को कमजोरी मान लेते हैं, लेकिन विकाश ने साबित किया है कि अगर सपनों को पाने की जिद हो, तो कोई भी चुनौती बड़ी नहीं होती।


सरकार और खेल मंत्रालय की भूमिका

इस पहल के पीछे भारतीय शारीरिक दिव्यांग क्रिकेट संघ (IDCA) और कुछ गैर-सरकारी संस्थाओं का अहम योगदान रहा है।
लेकिन अब वक्त है कि सरकार ऐसे आयोजनों को और ज्यादा बढ़ावा दे, ताकि गांव-कस्बों के और भी कई विकाश सामने आ सकें।


क्या कहती है क्रिकेट की दुनिया?

पूर्व भारतीय क्रिकेटर युवराज सिंह ने इस सीरीज़ को लेकर सोशल मीडिया पर पोस्ट किया है:

“Inspiration comes from the heart, not the muscle. Proud of our U-15 Disability team.”

इससे साफ है कि देश भर में लोग इस टीम को सपोर्ट कर रहे हैं।


निष्कर्ष नहीं, नई शुरुआत

यह सिर्फ विकाश का चयन नहीं है, बल्कि भारत के लिए एक नई शुरुआत है।
एक शुरुआत जिसमें सबको समान अवसर मिलेगा, जहां सपनों की उड़ान में कोई बाधा नहीं होगी।

इंग्लैंड में जब विकाश नीली जर्सी पहनकर मैदान पर उतरेंगे, तो उनके साथ सिर्फ तमिलनाडु नहीं, पूरा भारत खड़ा होगा।

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